कलयुग मे एक देश था इंद्रानगर, जहां इन्द्र नाम का राजा रहता था। उसके राज्य मे सभी लोग दुखी थे, क्योकि वो बहुत ही बुरा था ।
उसके डर से लोग सामने नहीं आते थे , राजा को चिंता हुई की में इतना बुरा क्यों हूँ......? तो उसने अपने आप को परिवर्तित करने का विचार बनाया।
कलयुग मे एक देश था इंद्रानगर, जहां इन्द्र नाम का राजा रहता था। उसके राज्य मे सभी लोग दुखी थे, क्योकि वो बहुत ही बुरा था ।
उसके डर से लोग सामने नहीं आते थे , राजा को चिंता हुई की में इतना बुरा क्यों हूँ......? तो उसने अपने आप को परिवर्तित करने का विचार बनाया।
एक दिन जब वह जंगल से गुजर रहा थे तभी एक ऋषि महात्मा जी उनको दिखे, वो भगवान का नाम ले रहे थे, किन्तु इन्द्र तो भगवान के बिलकुल ही विरुद्ध था। लेकिन फिर भी उसने अपने आप को बदलने का प्रण जो कर लिया था इसलिए वह ऋषि की शरण मे चला गया। उसने कहा महाराज मे अपने राज्य मे सबको प्रताड़ित करता हूँ, शायद इसलिए मेरी प्रजा मुझसे दुखी है , लेकिन अपनी प्रजा से मे भी बहुत दुखी हूँ, क्योकि लोग मेरा आत्म सम्मान नहीं करते डर के मारे मेरे सामने नतमस्तक हो जाते है। मुझे आत्म ग्लानि हो रही है, मैं कैसे एकदम से अपना स्वभाव परिवर्त्तित कर लूँ लोग मुझ पर हसने लगेगे। अगर मैंने अपना स्वभाव एकदम से परिवर्तित कर दिया।
तभी ऋषि ने बड़े भोलेपन से उत्तर दिया हे - राजन यह आपका भ्रम है , एक बार आप अपना स्वभाव परिवर्तित करके देखो, 4 दिन लोग आपको भला बुरा समझेगे डरपोक भी कहेगे। इसके बाद आपका ही गुणगान होगा, आपको प्रजा के लिए अच्छी योजनाएँ बनानी होंगी प्रजा का विशेष ध्यान रखना होगा इस प्रकार आपके राज्य मे सब सुखी हो जाएगे। बस किसी को जरुरत से अधिक मत देना ओर किसी को राज्य मे भीख नहीं मांगने देना।
इंद्र ने ऋषि का एक एक बात ध्यान से सुनी फिर उसे अपने राज्य मे लागू किया। फिर क्या था...... प्रजा राजा इन्द्र के गुणगान करने लगी और इन्द्र भी आत्म ग्लानि से मुक्त हो गए प्रजा सुखी हो गयी , राजा इन्द्र ने ऋषि महाराज का आत्मा से सम्मान किया।
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