Wednesday, July 7, 2021

राजा इन्द्र की अनोखी घड़ी



            राजा इन्द्र एक बार अपने राज्य का भ्रमण कर रहे थे, तभी अचानक उन्हे रास्ते मे एक चमकदार वस्तु मिली राजा ने उसे अनोखा दिव्य समझकर उठाया।


            राजा वापिस अपने महल आ गए ,राजा ने अगले दिन दरबार https://t.co/8Qgg7oQd6w?amp=1लगाया, और उस दिव्य वस्तु के बारे मे जानकारी जुटाने की कोशिश की उस समय राज्य मे उस प्रकार की वस्तु किसी के पास नहीं थी इसलिए सभी ने राजा से कहा की महाराज यह वस्तु कोई दिव्य वस्तु प्रतीत होती है तभी दरबार मे बैठे एक विद्वान व्यक्ति ने सलाह दी महाराज आप को अनोखी वस्तु मिली है इसका कोई बड़ा अस्तित्व होगा।
            अतः आप इसे अपने कक्ष के पूर्व दिशा की ओर रख दीजिये। राजा ने ऐसा ही किया उसने पूर्व दिशा की ओर अपनी इस वस्तु को रख दिया। राजा को सुबह उठकर सबसे पहले पूर्व दिशा को देखने की आदत दी, वे पूर्व दिशा में सूर्यदेव को नमन करते थे, इसलिए उनकी नजर उस दिव्य वस्तु पर रोज पड़ने लगी और वे  उसे रोज देखने लगे।  उसमे तीन सुई बनी थी राजा को कुछ समझ नहीं आ रहा था फिर भी राजा उसे हमेशा ही देखता एक दिन राजा ने उसमे यह जाना की यह पहर के







हिसाब से घूमती है।
            फिर से राजा को कुछ संदेह हुआ उसने अगले दिन फिर दरबार शुरू किया और अपने मन की जिज्ञासा को जल्दी से प्रगट किया और बोले पता नहीं यह चारों दिशाओं की ओर चलती है। राजा का दरबार लगा था उसी समय एक महाजन उठे और वस्तु की निहारने लगे ओर उन्होने अपनी गणित बैठाई और फिर पता लगाया की ये तो निश्चित ही घड़ी है ओर महाराज को बताया महाराज ये घड़ी है कलयुग मे लोग इसका बखूबी इस्तेमाल करते हैं।

            इस प्रकार इंद्र महाराज को घड़ी के घूमने ओर पहर के हिसाब से चलने का पूरा सिद्धांत समझ आया ओर राजा ने सभी विद्वानों को धन्यवाद किया ओर कहा कल से हम सभी इस घड़ी के समय के हिसाब से ही चलेगे क्योकि समय को कोई रोक नहीं सकता।
            इस प्रकार राजा इन्द्र की दिव्य वस्तु घड़ी बन गयी और सभी ने इस घड़ी के हिसाब से काम करने का निश्चय  किया और घड़ी की कहानी समाप्त हुई।
                                                                                                    -Indra Kumar Lodhi
                                                                                                         Pawai Panna wale...

Tuesday, July 6, 2021

कलयुग का इन्द्र कैसे परिवर्तित हुआ...?

कलयुग मे एक देश था इंद्रानगर, जहां इन्द्र नाम का राजा रहता था। उसके राज्य मे सभी लोग दुखी थे, क्योकि वो बहुत ही बुरा था ।

उसके डर से लोग सामने नहीं आते थे , राजा को चिंता हुई की में इतना बुरा क्यों हूँ......? तो उसने अपने आप को परिवर्तित करने का विचार बनाया।

एक दिन जब वह जंगल से गुजर रहा थे तभी एक ऋषि महात्मा जी उनको दिखे, वो भगवान का नाम ले रहे थे, किन्तु इन्द्र तो भगवान के बिलकुल ही विरुद्ध था। लेकिन फिर भी उसने अपने आप को बदलने का प्रण जो कर लिया था इसलिए वह ऋषि की शरण मे चला गया।  उसने कहा महाराज मे अपने राज्य मे सबको प्रताड़ित करता हूँ, शायद इसलिए मेरी प्रजा मुझसे दुखी है , लेकिन अपनी प्रजा से मे भी बहुत दुखी हूँ, क्योकि लोग मेरा आत्म सम्मान नहीं करते डर के मारे मेरे सामने नतमस्तक हो जाते है। मुझे आत्म ग्लानि हो रही है, मैं कैसे एकदम से अपना स्वभाव परिवर्त्तित कर लूँ लोग मुझ पर हसने लगेगे। अगर मैंने अपना स्वभाव एकदम से परिवर्तित कर दिया। 

तभी ऋषि ने बड़े भोलेपन से उत्तर दिया हे - राजन यह आपका भ्रम है , एक बार आप अपना स्वभाव परिवर्तित करके देखो, 4 दिन लोग आपको भला बुरा समझेगे डरपोक भी कहेगे। इसके बाद आपका ही गुणगान होगा, आपको प्रजा के लिए अच्छी योजनाएँ बनानी होंगी प्रजा का विशेष ध्यान रखना होगा इस प्रकार आपके राज्य मे सब सुखी हो जाएगे। बस किसी को जरुरत से अधिक मत देना ओर किसी को राज्य मे भीख नहीं मांगने देना।

इंद्र ने ऋषि का एक एक बात ध्यान से सुनी फिर उसे अपने राज्य मे लागू किया।  फिर क्या था......  प्रजा राजा इन्द्र के गुणगान करने लगी और  इन्द्र भी आत्म ग्लानि से मुक्त हो गए प्रजा सुखी हो गयी ,  राजा इन्द्र ने ऋषि महाराज का आत्मा से सम्मान किया।

इस प्रकार से कलयुग के राजा इन्द्र में परिवर्तन हुआ।

                                                                                                                            -indra kumar lodhi


राजा इन्द्र की अनोखी घड़ी

               राजा इन्द्र एक बार अपने राज्य का भ्रमण कर रहे थे, तभी अचानक उन्हे रास्ते मे एक चमकदार वस्तु मिली राजा ने उसे अनोखा दिव्य समझक...